“डेहरा कब्रिस्तान” की 1 सच्ची घटना | भारत का सबसे भुतिया कब्रिस्तान

दोस्तों यह डेहरा कब्रिस्तान की एक सच्ची घटना  है जो भारत के सबसे हॉन्टेड जगह में से एक हैं कहा जाता है की इस कब्रिस्तान में कई साडी अनहोनी घंताये हो चुकी है जिन्हें लोग बाद में सच्ची घटना कहकर लोगों के सामने रखते है इन्ही में से एक सच्ची घटना आज मै इस आर्टिकल में लिख रह हूँ लोगों का मानना है कि इस कब्रिस्तान मे कोई भी रात के 11 बजे के बाद उसके आगे से नहीं जा सकता। उस कब्रिस्तान के अंदर से जाना बहुत दूर की बात हैं कोई भी उस कब्रिस्तान के आगे से भी नहीं जा सकता।इसकी दीवारे भी लगभग 1 किलोमीटर तक फैली हुई हैं। कोई भी आदमी रात के 11 बजे के बाद वहाँ से जाता हैं तो वो जिन्दा नहीं लौट पाता। कहा जाता हैं कि उस जगह जितनी भी बुरी शक्तियां हैं वो बस एक दीवारे तक सीमित हैं। इसका मतलब यह कि कोई भी बुरी आत्मा उस कब्रिस्तान की दीवारों से आगे नहीं जाती। कोई गलती से रात के 11 बजे के बाद वहाँ से जाता हैं तो बुरी आत्मा उसे बस उस कब्रिस्तान की सीमा तक ही मार सकती। अन्यथा नही मार सकती । आइये शुरू करते है “डेहरा कब्रिस्तान” की सच्ची घटना को पढना |

डेहरा-कब्रिस्तान-की-सच्ची-घटना
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“डेहरा कब्रिस्तान” की सच्ची घटना :

यह कहानी है डेहरा कब्रिस्तान के पास के एक छोटे से गाँव में रहने वाले विवेक की। उसके साथ ही यह घटना घटित हुई थी। मै यह कहानी में उन्ही के शब्दों से आपके सामने रखता हू।

मेरा नाम विवेक हैं मैं टांगा चलाता हु( यह टांगा एक प्रकार की गाड़ी हैं जिसमें एक घोड़ा जोड़ा जाता है।) रविवार का दिन था उस दिन लोग व्यवसाय से अवकाश लिए रहते थे। इसलिए मे घर पर ही था। शाम के लगभग 6 बज रहे थे। तभी अचानक से रामु मेरे घर आया। रामु हमारे गाँव का नही था। पर उसके खेत हमारे गाँव मे ही थे। जिस वजह से यह हमारे गाँव मे आता रहता था। रामु मेरे पास आकर बोलता है

अरे विवेक भाई मेरे खेत मे घाँस कटी रखी हैं, जरा आप मेरी घाँस को मेरे घर तो छोड़ दोंगे। मैने भी हाँ बोल दिया। क्युकी उसका गाँव हमारे गाँव से लगभग 7 या 8 किलोमीटर की दुरी पर था। सोचा कि रात के 11 बजे से पहले घर लौट आ ही जाऊंगा।

फिर मे रामु के साथ उसके खेत चला जाता है। वहाँ उसके खेत की घाँस लोड करने में काफ़ी समय लग गया था। वरना मे घर टाइम पर आ ही जाता। फिर उसके खेत से रवाने हुए और हमे रामु के गाँव पहुँचने में ही 10 बज गए थे। फिर उसके बाद घाँस टांगे से नीचे रखने में भी काफी समय लग गया था। 11 बजने मे कुछ ही समय बाकी रहा। इसलिए रामु मुझे बार बार अपने घर पर रुकने को बोल रहा था।

क्युकी उसके गाँव से हमारे गाँव तक जाने का बस एक ही रास्ता था जो उस डेहरा कब्रिस्तान के आगे से होकर जाता था। एक बार को तो मेरा मन भी रामु की बात मानने के लिए राजी हो गया। लेकिन मै घर नहीं गया तो मेरे घर वाले परेशान हो जाएगे। ना मेरे पास कोई फ़ोन था और ना ही मेरे घर वालो के पास। मेरे घर मे बूढ़े मेरे माँ बाप और मेरी बीवी और मेरे दो छोटे छोटे बच्चे थे। उन सब की चिंता ने मुझे आने पर मजबूर कर दिया था।

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फिर मे रामु के घर से निकल गया। अब मैं उस ही डेहरा कब्रिस्तान के पास आ गया। फिर मैंने अपनी घड़ी में समय देखा रात के लगभग 11 बज चुके थे। पहले तो मैंने वहाँ से लौट जाने को सोचा। फिर कैसे भी करके मैंने हिम्मत करी और आगे बढ़ चला। मैं कुछ ही आगे गया था। तभी मुझे ऐसा लगा कि कोई मेरे घोड़ेगाड़ी पर आकर बैठ गया हो। मैंने हिम्मत करके पीछे मूड कर देखा पर वहाँ पर कोई नहीं था। लेकिन फिर भी मुझे यही लग रहा था कि कोई मेरे पीछे बैठा हो । ज्यो त्यों हिम्मत करके मैं थोड़ा और आगे बढ़ा तो मेरे टांगे का वजन बढ़ गया।

मैं जैसे जैसे आगे की ओर बढ़ता जा रहा था वैसे वैसे टांगे में भी वजन बढ़ते जा रहा था। अब पीछे इतना वजन हो गया था कि मेरे टांगा आगे से थोड़ा ऊपर उठने लगा था। मेरा घोड़ा भी लगड़ा चल रहा था। मै सब समझ गया था, कि मेरे टांगा मे कोई आत्मा आकर बैठे गई हैं और अब मैं शायद ना बच पाउँगा। इसी बीच मुझे मेरी माँ की बात याद आई जो उन्होने मुझे बचपन मे बताया था कि यह भूत और आत्मा आग से थोड़ा डरते हैं।

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तभी मैंने अपने जैब में रखी बीड़ी निकाली और मैं बीड़ी पीने लग गया। जैसे ही मेरी एक बीड़ी खत्म होती तो मै दूसरी बीड़ी जला देता। ऐसा करते करते पूरी बीड़ी खत्म हो गई थी। टांगे मैं इतना वजन हो रखा था कि घोड़ा भी बहुत धीरे धीरे चल रहा था। इसलिए मैं अभी तक कब्रिस्तान को आधा पार भी नहीं कर पाया था। ऊपर से सर्दी का समय था इसलिए मैंने 2-3 कपडे पहने थे।मुझे विचार आया कि वैसे तो मेरी पूरी बीड़ी खत्म हो गई तो जो मैंने कंबल ओढी हुई थी उसे उतार दु। उस पर आग लगा दूँ। फिर कंबल भी आग मे जलकर खत्म होने ही वाली थी।

तो मैंने अपना स्वेटर खोलकर उसे भी उस आग के अंदर जला दिया। फिर स्वेटर भी आग मे जलकर खत्म होने वाला ही था। उसे पहले मैंने अपनी कमीज भी निकालकर आग मे डाल दी। अपनी जान बचाने के लिए कुछ तो करना ही था। इसलिए मैं अपने शरीर में पहने हुए सभी कपड़ो को धीरे धीरे करके जला रहा था। मेरे शरीर के ऊपर के सारे कपडे खत्म होने वाले ही थे। तो मैंने अपने पैजामा को भी उतर कर उस आग मे डाल दिया।

डेहरा-कब्रिस्तान-की-सच्ची-घटना
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अब मे सोच रहा था की अब मेरे पास एक कच्चा ही बचा है। अब क्या करू। लेकिन मेरे पैजामे की आग खत्म होती उससे पहले ही मै उस कब्रिस्तान की दीवारे को पार कर दिया। पार करते ही अचानक से मेरे घोड़ेगाड़ी का वजन कम हो गया फिर मेरे पीछे एक भयानक और डरावनी सी औरत ने मुझे आवाज दी उसने अपनी खौफनाक आवाज से मुझे बोला- आज तो तु बच गया अगली बार आया तो नही बचेगा। 

यह सब सुनकर मे हका बका रह गया। वो अपनी जगह से हिले भी नही। मै डर के मारे अपनी घोड़े गाड़ी को तेजी से भगाया। अपने घर की ओर चल दिया। उसके बाद मे लगभग 12 दिन बीमार रहा। कुछ बोल भी नही पाता। उस दिन से मैने सोच लिया कभी भी इस रास्ते से रात मे नही जाऊँगा।

“डेहरा कब्रिस्तान” की सच्ची घटना का समापन :

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आवश्यक बात :-  “डेहरा कब्रिस्तान” की यह सच्ची घटना मैने किसी ब्लॉग पर पढ़ा था जिसे मैने यहाँ थोडा फेर बदल करके लिखा है यह घटना काल्पनिक भी हो सकती है इसे सिर्फ एक कब्रिस्तान से जोड़ कर लिखा गया है यह कहानी किसी भी अन्धविश्वास को बड़ावा देने के लिए नही लिखी गयी है इन्हें सिर्फ मनोरंजन के उद्देश्य से लिखा गया है |

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